Saturday, October 12, 2024
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12 अप्रैल को दोपहर 1:11 बजे खत्म होगी: Navratri 2024: 4th Day Maa Kushmanda Devi Puja: नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्‍मांडा की पूजा

चैत्र नवरात्रि 2024 के चौथे दिन, भक्तगण माँ कुष्मांडा की पूजा करेंगे, जो मां दुर्गा की चौथी अवतार हैं। हिन्दू पौराणिक कथानुसार, मां कुष्मांडा को ब्रह्मांड की सृष्टिकर्ता माना जाता है। “कुष्मांडा” नाम संस्कृत शब्द “कु” (थोड़ा), “उष्मा” (गर्मी), और “अंडा” (ब्रह्मांडीय अंडा) से लिया गया है। कहा जाता है कि माँ कुष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान के साथ दुनिया को जीवन और प्रकाश प्रदान किया।

माँ कुष्मांडा की महिमा और पूजा विधि का महत्व

माँ कुष्मांडा की पूजा उनकी सकारात्मकता, ऊर्जा, और प्रकाश के लिए की जाती है। भक्तगण खुशियों, स्वास्थ्य, और समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। पूजा विधि में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है, फिर माँ कुष्मांडा की मूर्ति को सिंदूर, मेहंदी, काजल, बिंदी, और अन्य “श्रृंगार” वस्त्रों से अर्पित किया जाता है। भक्तगण भी उनकी पसंदीदा लाल फूलों का अर्पण करते हैं।

मंत्र और भोग

पूजा के दौरान प्रमुख मंत्र हैं:

ॐ देवी कुष्मांडायै नमः

सुरसंपूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव चा दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदस्तु मे

या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

माँ कुष्मांडा को अर्पित भोग में मालपुआ, हलवा, और दही शामिल हैं। कुछ भक्तगण सफेद कद्दू (पेठा) और अन्य मौसमी फल भी अर्पित करते हैं।

चैत्र नवरात्रि 2024 : 4 दिन का विवरण

इस साल, चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन का उत्सव 11 अप्रैल, 2024 को मनाया जाएगा। चतुर्थी तिथि 11 अप्रैल को दोपहर 3:04 बजे शुरू होगी और 12 अप्रैल को दोपहर 1:11 बजे खत्म होगी। ब्रह्मा मुहूर्त सुबह 4:43 बजे से 5:33 बजे तक होगा, और विजया मुहूर्त दोपहर 2:00 बजे से 2:46 बजे तक रहेगा।

भक्तगणों को माँ कुष्मांडा की भक्ति के साथ पूजा करने और उनके आशीर्वाद की कामना करते हुए समृद्ध और योग्य जीवन के लिए उनसे प्रार्थना की जाती है।

नवरात्रि में मां दुर्गा के चौथे रूप मां कुष्‍मांडा की पूजा चौथे दिन करने का विधान है। इस दिन सभी लोग विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा करते हैं और भोग मिठाई और फल अर्पित करके आरती करते हैं। मां को भोग में मालपुआ भी बेहद प्रिय है। इसलिए पूजा में मालपुआ भी रखना चाहिए।

मां कुष्‍मांडा 8 भुजाओं वाली दिव्‍य शक्ति धारण मां परमेश्‍वरी का रूप हैं। मान्‍यता है कि मां कुष्‍मांडा की पूजा करने से आपके सभी अभीष्‍ट कार्य पूर्ण होते हैं और जिन कार्य में बाधा आती हैं वे भी बिना किसी रुकावट के संपन्‍न हो जाते हैं। मां कुष्‍मांडा की पूजा करने से भक्‍तों को सुख और सौभाग्‍य की प्राप्ति होती है। देवी पुराण में बताया गया है कि पढ़ने वाले छात्रों को मां कुष्‍मांडा की पूजा नवरात्रि में जरूर करनी चाहिए। मां दुर्गा उनकी बुद्धि का विकास करने में सहायक होती हैं।

मां को क्‍यों कहते हैं कुष्‍मांडा 

देवी कुष्‍मांडा की महिमा के बारे में देवी भागवत पुराण में विस्‍तार से बताया गया है मां दुर्गा के चौथे रूप ने अपनी मंद मुस्‍कान से ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति की थी, इसलिए मां का नाम कुष्‍मांडा देवी पड़ा। ऐसी मान्‍यता है कि सृष्टि के आरंभ में चारों तरफ अंधियारा था और मां ने अपनी हल्‍की हंसी से पूरे ब्रह्मांड को रच डाला। सूरज की तपिश को सहने की शक्ति मां के अंदर है।

ऐसा है मां कुष्‍मांडा का रूप 

मां कुष्‍मांडा का स्‍वरूप बहुत ही दिव्‍य और अलौकिक माना गया है। मां कुष्‍मांडा शेर की सवारी करती हैं और अपनी आठ भुजाओं में दिव्‍य अस्‍त्र धारण की हुई हैं। मां कुष्‍मांडा ने अपनी आठ भुजाओं में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र धारण की हुई हैं। मां का यह रूप हमें जीवन शक्ति प्रदान करने वाला माना गया है।

मां कुष्‍मांडा का भोग

मां कुष्‍मांडा की पूजा में पीले रंग का केसर वाला पेठा रखना चाहिए और उसी का भोग लगाएं। कुछ लोग मां कुष्‍मांडा की पूजा में समूचे सफेद पेठे के फल की बलि भी चढ़ाते हैं। इसके साथ ही देवी को मालपुआ और बताशे भी चढ़ाने चाहिए।

मां कुष्‍मांडा का पूजा मंत्रबीज मंत्र

कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:

पूजा मंत्र:

 ऊं कुष्माण्डायै नम:

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

मां कुष्‍मांडा की पूजाविधि

नवरात्रि के चौथे दिन सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान कर लें और पूजा की तैयारी कर लें मां कुष्‍मांडा का व्रत करने का संकल्‍प करें। पूजा के स्‍थान को सबसे पहले गंगाजल से पवित्र कर लें। लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां की प्रतिमा स्‍थापित करें। मां कुष्‍मांडा का स्‍मरण करें। पूजा में पीले वस्‍त्र फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत आदि अर्पित करें। सारी सामिग्री अर्पित करने के बाद मां की आरती करें और भोग लगाएं। सबसे आखिर में क्षमा याचना करें और ध्‍यान लगाकर दुर्गा सप्‍तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

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