आज रमज़ान माह इस्लामिक कैलेंडर के आठवां महीना है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग एक महीने तक रोज़ा रखते हैं। यह महीना इबादत, ताक़ात, और साधना का महीना माना जाता है। रमज़ान के माह में रोज़ा रखने और खोलने की दुआएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो इस धार्मिक आयाम को और भी पवित्र और समृद्ध बनाती हैं।
रोज़ा खोलने की दुआ, जिसे इफ्तार कहते हैं, रोज़ा खोलने के समय पढ़ी जाती है। यह दुआ अल्लाह से बरकत और रहमत की मांग करती है और उसका आभास दिलाती है कि रोज़ा खोलने का समय आ गया है। इसके अलावा, रोज़ा रखने की दुआ, जिसे सहूर कहा जाता है, सुबह से पहले खाने पीने का समय होता है और इस दुआ के माध्यम से इबादत का प्रारंभ किया जाता है।
रोज़ा रखने की दुआ: “वेबिस्मिल्लाहि, वस सौफ्फिहि, वस सौमिहि”
रोज़ा खोलने की दुआ: “अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुम्तु, व बिका आमंतु, व अलैका तवक्कलतु, व आला रिजाइका अफ्तरतु”
ये दुआएँ रमज़ान के माह के महत्वपूर्ण धार्मिक आयाम हैं जो मुसलमानों को इस्लामिक साल के इस पवित्र महीने में आत्मसात की भावना दिलाती हैं। इन दुआओं का उच्चारण और उनका मान समय के साथ अपनी अपनी साधना और विश्वास को मजबूत करता है। यह मानव को अल्लाह के समीपता और उसके विशेष आशीर्वाद के साथ जोड़ती है, जो धार्मिकता और भक्ति की ऊर्जा को बढ़ाता है।
रमज़ान के महीने में इन दुआओं को पढ़कर मुसलमान समुदाय के लोग अपने आत्म-विकास और धार्मिकता के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। इन दुआओं की मान्यता और उनके माध्यम से अल्लाह के सामर्थ्य का आभास, धार्मिक संदेश को समझने में मदद करता है और व्यक्तिगत आत्मिक विकास में सहायक होता है। इस प्रकार, रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने और खोलने की दुआओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है जो धार्मिक और आध्यात्मिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देते हैं।
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